Monday, September 15, 2014

भारत में महिला सशक्तीकरण की बात सिर्फ हवा हवाई


जी हां मेरी यह पोस्ट भले ही कुछ लोगों को बुरी लगे पर यह सच है कि इस देश में महिला सशक्तीकरण की बात करना सिर्फ हवा में गुम्बारे उड़ाना ही है।  देश में महिलाओं के प्रति जिस तरह से अपराध बढ़ा है और सरकार तथा कानून व्यवस्था जिस तरह महिलाओं की उपेक्षा करके उनकी बातों को तरजीह नहीं देती हैं। उसके लिये महिलायें भी जिम्मेदार हैं। आज देश में लाखों ऐसे मामले हैं जहां महिलाओं को प्रताड़ना की शिकार होना पड़ता है। भले कानून ने महिला प्रताड़ना के लिये कठोर कानून बना दिये है। पर कितनी महिलाओं को न्याय मिल पाता है। सृष्टि की जननी कही जाने वाली महिलाये प्रताड़ित होने के बाद भी घर में बैठ कर और उसे किस्मत मानकर सिसकती रहती हैं। इससे प्रताड़ना करने वालों का हौसला बढ़ता है। दूसरी बात किसी भी चुनाव में महिलाओं को न्याय और उनकी सुरक्षा देने की बात कभी मुद्दा नहीं बनती है। घर का पुरूष चुनाव में जो अध्यादेश लागू कर देता है। बस उसी को मानकर महिला वोट दे आती है। इसके बावजूद यदि एक महिला चाहे अपना हित देखकर वोट देना सीखे और बदलाव की रूपरेखा तय करे। किसी महिला के साथ यदि अत्याचार होता है तो आवाज उठायें। घर में बैठकर सिसकने और रोने तथा इस हालात से उबकर आत्महत्या कर लेने से भले ही लगता हो कि समस्या हल हो गयी किन्तु ऐसे हालात अत्याचार करने वाले पुरूष समाज का मनोबल उंचा कर देता है। उसके मन में यह भावना आती है कि कोई हमारा क्या कर लेगा। यहीं भावना जबतक पुरूष समाज के अन्दर बनी रहेगी तबतक महिला अत्याार की शिकार होती रहेगी।
एक बात मैं सभी पुरूषों से भी कहना चाहती हूं। जब कोई महिला प्रताड़ना की शिकार हो और समाज के सामने आकर अपने साथ हुये अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाये तो उसका खुलकर साथ दें और भरपूर समर्थन करें। जो लोग हम जैसी महिलाओं के दुःख को समझ नहीं पाते और मजाक का पात्र बनाते हैं। उन्हें एक बार उनसे सबक लेना चाहिये जिसके बहन बेटी के साथ ऐसी घटना होती है। तब उनके उपर क्या गुजरती है। हर औरत की यह कामना होती है कि वह अपने घर में अपने परिवार बच्चों के साथ सुख और शान्ति पूर्वक जीवन बिताये। किन्तु हमें आवाज उठाने के लिये बेबस कौन करता है। इस बात को उन सभी लोगों को मंथन करना होगा। जो मां बहन औन बेटी को आदर और सम्मान की दृष्टि से देखते हैं।
जरा सोचिये जिस देश में औरत को मां का स्वरूप देकर मंदिर में बैठाकर पूजा की जाती हैं। उसी देश में महिलाओं की इतनी दुर्दशा क्यों है। अफसोस होता है यह देखकर कि जब आप मां के मन्दिर में जाते हैं। उन्हें देवी मानकर पूजा करते है। और जब मंदिर से बाहर निकलते हैं तो दूसरे घर की महिलायें आपकी निगाह में एक सामान एक उपभोग की वस्तु दिखायी देने लगती है।
जरा सोचिये आज जो मेरे साथ हुआ है। कल वहीं आपकी बहन और बेटी {भगवान न करे} के साथ हो जाय तो आपके दिल पर क्या गुजरेगी।